शास्त्रों के अनुसार कब-क्या निषेध है । प्रतिपदा तिथि प्रतिपदा तिथि में गृह निर्माण, गृह प्रवेश, वास्तुकर्म, विवाह, यात्रा, प्रतिष्ठा, शान्तिक तथा पौष्टिक कार्य आदि सभी मंगल कार्य किए जाते हैं. कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को बली माना गया है और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में चन्द्रमा को निर्बल माना गया है. इसलिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में विवाह, यात्रा, व्रत, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चूडा़कर्म, वास्तुकर्म तथा गृहप्रवेश आदि कार्य नहीं करने चाहिए. द्वित्तीया तिथि विवाह मुहूर्त, यात्रा करना, आभूषण खरीदना, शिलान्यास, देश अथवा राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, उपनयन आदि कार्य करना शुभ माना होता है परंतु इस तिथि में तेल लगाना वर्जित है. तृतीया तिथि तृतीया तिथि में शिल्पकला अथवा शिल्प संबंधी अन्य कार्यों में, सीमन्तोनयन, चूडा़कर्म, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज-संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं. चतुर्थी तिथि सभी प्रकार के बिजली के कार्य, शत्रुओं का हटाने का कार्य, अग्नि संबंधी कार्य, शस्त्रों का प्रयोग करना आदि के लिए यह तिथि अच्छी मानी गई है. क्रूर प्रवृति के कार्यों
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Showing posts from September, 2021
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l ॐ शिव गोरक्ष ll भगवान गुरु गोरक्षनाथ शक्ति का आधार:- भगवान गुरु गोरक्षनाथ को नाथ पंथ में मुख्य रूप से शिव गोरक्षनाथ के नाम से जाना जाता है। शिव गोरक्षनाथ का अर्थ है भगवान शिव ही भगवान गुरु गोरक्षनाथ स्वरुप धारण कर हर युग में पृथ्वी पर निवास करते हैं। धूनी रमाने वाले महायोगी के स्वरुप में उनकी सम्पूर्ण विश्व में ख्याति है। एक समय की बात है माता पार्वती ने भोलेनाथ को कहा, जहाँ जहाँ आप हो वहां वहां मैं हूँ और जहाँ जहाँ मैं हूँ वहां वहां आप हो। भगवान भोलेनाथ बोले, जहाँ जहाँ तुम हो वहां वहां मेरा होना आवश्यक है किन्तु जहाँ जहाँ मैं हूँ, वहां वहां तुम्हारा होना आवश्यक नहीं। यह सुनकर देवी पार्वती क्रोधित हो गयी और बोलीं मैं ही सम्पूर्ण सृष्टि में योगमाया के स्वरुप में व्याप्त हूँ। सृष्टि में कोई भी मेरी माया से नहीं बच सकता। उन्होंने कहा भोलेनाथ आप स्वयं भी मेरी माया में ही हो। यह सुनकर भगवान भोलेनाथ बोले, गौरां तुम्हे एक स्थान बताता हूँ उस स्थान पर जाओ। एक 12 वर्ष का महायोगी उस स्थान पर ध्यान में लींन है। अपनी माया से अगर तुम उसको विचलित कर दो तो मैं जान जाऊँगा की सम्पूर्ण सृष्टि तुम्हार
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धन लाभ के लिए माता काली का शाबर मंत्र :------- मंत्र :- ओम नमो चंडी चंडी महा चंडी काली काली महाकाली दुर्गे दुर्गे महादुर्गे संकट हरो रक्षा करो मनोकामना पूर्ण करो जो न करो तो दुहाई गुरु गोरख नाथ की दुहाई ईश्वर महादेव गोरा पार्वती की महाबलीभैरव की दुहाई | विधि:----- इस मंत्र का जाप सुबह के समय 30 मिनट तक करें | मंत्र साधना गुरु जी की निगरानी में ही करें अन्यथा परिणाम घातक हो सकते है। किसी भी मंत्र कि सपूर्ण फल प्रापती के लिए इन्हें जाग्रत करने की आवश्यकता होती है, जो की गुरु जी द्वारा ही किया जाता है।
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व्यक्ति के मन में तन्त्र, तांत्रिक या टोने-टोटके का नाम सुनते ही यह जिज्ञासा उठती है कि यह तन्त्र होता क्या है? तन्त्र एक ऐसी प्राचीन विद्या है जो की शरीर पर खुद का नियंत्रण बढ़ाती है। आम तौर पर देखा जाए तो तन्त्र की परिभाषा बहुत ही सरल है तन्त्र शब्द का अर्थ तन यानी तन से जुड़ा है। ऐसी सिद्धियां जिन्हें पाने के लिए पहले तन को साधना पड़े उसे तन्त्र कहते हैं। तन्त्र एक तरह से शरीर की ऐसी साधना प्रणाली है जिसमें मुख्या केंद्र शरीर होता है। तन्त्र का प्रारंभ भगवान शिव को ही माना गया है। शिव और शक्ति की साधना के बिना तन्त्र सिद्धि को हासिल करना असंभव है। शिव और शक्ति ही तन्त्र शास्त्र के अधिष्ठाता, देवता एवं दाता हैं। तन्त्र शास्त्र के प्रयोग से तांत्रिक किसी भी जटिल कार्य (शुभ या अशुभ) को सहज ही सफल करने में सक्षम होते हैं। अगर तन्त्र का प्रयोग केवल शुभता के लिए किया जाये तो धरती किसी स्वर्ग से काम नहीं होगी। तन्त्र शास्त्र के बारे में समाज की अज्ञानता ही इसके डर का मुख्य कारण हैं। क्यूंकि कई तांत्रिकों ने तन्त्र के गलत प्रयोग से लोगों की जिंदगी बरबाद कर दी या उन्हें बीमार बना
( मुक्ति एवं शक्ति प्राप्त )
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हरि ॐ ( मुक्ति एवं शक्ति प्राप्त ) जैसा हम हमेसा ही कहा करते हैं लेख को शान्त मन से अध्ययन किया जाए जब ही आप इन मे लिखी हुई बातो को विचार कर के देखे की लिखा जो गया है उन में सत्य का भाव नज़र आता है या अधर्म का भाव है हम सभी मे मनुष्य की तीन नस्ल हुआ करती है महिला पुरुष किन्नर यह तीन मनुष्य ही है इन तीनो में भी तरह तरह के विचार के मनुष्य हुआ करते हैं किसी मे सुर भाव होता है किसी मे असुर भाव है अब इन सभी मे बहुत लोगो मे गुण हुआ करते हैं कि वह मुक्ति प्राप्त करे बहुत से शक्ति प्राप्त करने के लिए जन कल्याण का कार्य करने का विचार रखते हैं और सभी भिन्न भिन्न कर्मो द्वारा अपना लक्ष्य पाने की कोशिश किया ही करते हैं जिस को अपने जीवन मे मुक्ति चाहिए उस मनुष्य को क्या कर्म करने चाहिए इस के लिए यह बात पहले जान लो कि यह जो कलयुग हैं जिस में हम आप इस समय जीवित है यह अन्य युगों से सर्वश्रेष्ठ हैं मुक्ति की आशा रखने वालों व्यक्ति के लिए यह हम किस आधार पर कह रहे हैं वह भी बताते हैं क्योकि इस युग मे मानव की उम्र बहुत कम है जितना यह कलयुग बढ़ता जाएगा मानव की उम्र कम होती चली जायेगी ज
भगवती साधना की दिक्कतें
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भगवती साधना की दिक्कतें जब व्यक्ति भगवती की साधना में उतरता है मान लो शतनाम कर रहा या किसी मंत्र का जप कर रहा है तो उसके पास शक्ति आना शुरू हो जाती है जैसे ही 1000 पाठ से ऊपर चलता है या सबालाख मन्त्र होते ही। अब समस्या यही से उत्पन्न होना शुरू होती है 1 अगर आपके गुरु न हुए मन्त्र जप करने लगे तो आपकी ऊर्जा चुराने बाले और आपको दंडित करने बाले आ जाते जो दिक्क्त करते। 2.अगर आपका दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में कर रहे तो ग्रह नक्षत्र न चाहे की आप साधना करो और पापों से मुक्ति हो जाये तो बो आपको किसी प्रकार से रोकने की कोशिश करते है। 3 यदि आप डटे रहे तब आपके घर मे उपस्थित प्रेत भागेंगे कुछ दम भी दिखा सकते आपको पीड़ा दे के लड़ाई करा के बीमार करके। 4 अगर आप पे या आपके परिवार पे कोई प्रयोग हुआ था कभी भी जिसका निपटारा न हुआ हो आपको पता न हो बो भी सामने आएगा निपटारा होगा। 5.आपके पुरखे चले आते कुलदेव कूलदेवी चली आती की भैया हमारे लिए करो 6 आपके आस पास की शक्तियां क्षेत्रपाल भी आशा रखते हमे भी कुछ मिले। 7 इन सब से साधक परेशान हो जाता है की रिजल्ट न मिल रहा परेशानी बढ़ रही लेकिन भाई ये आपका पुराना लेजर है ज
चौसठ योगिनी और उनका जीवन में योगदान
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चौसठ योगिनी और उनका जीवन में योगदान:- स्त्री पुरुष की सहभागिनी है,पुरुष का जन्म सकारात्मकता के लिये और स्त्री का जन्म नकारात्मकता को प्रकट करने के लिये किया जाता है। स्त्री का रूप धरती के समान है और पुरुष का रूप उस धरती पर फ़सल पैदा करने वाले किसान के समान है। स्त्रियों की शक्ति को विश्लेषण करने के लिये चौसठ योगिनी की प्रकृति को समझना जरूरी है। पुरुष के बिना स्त्री अधूरी है और स्त्री के बिना पुरुष अधूरा है। योगिनी की पूजा का कारण शक्ति की समस्त भावनाओं को मानसिक धारणा में समाहित करना और उनका विभिन्न अवसरों पर प्रकट करना और प्रयोग करना माना जाता है, बिना शक्ति को समझे और बिना शक्ति की उपासना किये यानी उसके प्रयोग को करने के बाद मिलने वाले फ़लों को बिना समझे शक्ति को केवल एक ही शक्ति समझना निराट दुर्बुद्धि ही मानी जायेगी,और यह काम उसी प्रकार से समझा जायेगा,जैसे एक ही विद्या का सभी कारणों में प्रयोग करना। 1. दिव्ययोग की दिव्ययोगिनी :- योग शब्द से बनी योगिनी का मूल्य शक्ति के रूप में समय के लिये प्रतिपादित है,एक दिन और एक रात में 1440 मिनट होते है,और एक योग की योगिनी का समय 22.5 मिनट का ह
बीज मंत्र बीज मंत्र पूरे मंत्र का एक छोटा रूप होता
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बीज मंत्र बीज मंत्र पूरे मंत्र का एक छोटा रूप होता है जैसे की एक बीज बोने से पेड़ निकलता है उसी प्रकार बीज मंत्र का जाप करने से हर प्रकार की समस्या का समाधान हो जाता हैं। अलग- अलग भगवान का बीज मंत्र जपने से इंसान में ऊर्जा का प्रवाह होता हैं और आप भगवान की छत्र-छाया में रहते हैं। चमत्कारी और प्रभावशाली बीज मंत्रों का जाप करने से दसों-दिशाओं एवं आकाश-पाताल में जल, अग्नि व हर प्रकार की समस्या से निजात पाया जा सकता हैं। मूल बीज मंत्र मूल बीज मंत्र “ॐ” होता है जिसे आगे कई अलग बीज में बांटा जाता है- योग बीज, तेजो बीज, शांति बीज, रक्षा बीज. ये सब बीज इस प्रकार जापे जाते हैं- ॐ, क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं,हलीं, त्रीं,क्ष्रौं, धं,हं,रां, यं, क्षं, तं. बीज मंत्र और उनके लाभ बीज मंत्र हमें हर प्रकार की बीमारी, किसी भी प्रकार के भय, किसी भी प्रकार की चिंता और हर तरह की मोह-माया से मुक्त करता हैं। अगर हम किसी प्रकार की बाधा हेतु, बाधा शांति हेतु, विपत्ति विनाश हेतु, भय या पाप से मुक्त होना चाहते है तो बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। ह्रीं ...(मायाबीज) इस मायाबीज में ह
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कुण्डलिनी जागरण के लिए प्रयुक्त होने वाली सोऽहम् साधना-अजपा गायत्री के विज्ञान एवं विधान के समन्वय को हंसयोग कहते हैं। हंसयोग साधना का महत्त्व और प्रतिफल बताते हुए योगविद्या के आचार्यों ने कहा है- सर्वेषु देवेषु व्याप्त वर्तते यथा ह्यग्निः कष्ठेषु तिलेषु तैलमिव। त दिवित्वा न मृत्युमेति-हंसोपनिषद् जिस प्रकार काष्ठ में अग्नि और तिलों में तेल रहता है। उसी प्रकार समस्त देहों में ‘हंस’ ब्रह्म रहता है। जो उसे जान लेता है सो मृत्यु से छूट जाता है। सोऽहम् ध्वनि को निरन्तर करते रहने से उसका एक शब्द चक्र बन जाता है जो उलट कर हंस सदृश प्रतिध्वनित होता है। इसी आधार पर उस साधना का एक नाम हंसयोग भी रखा गया हैं। हंसो हंसोहमित्येवं पुनरावर्तन क्रमात्। सोहं सोहं भवेन्नूनमिति योग विदो विदुः-योग रसायनम् हंसो, हंसोहं-इस पुनरावर्तित क्रम से जप करते रहने पर शीघ्र ही सोह-सोह ऐसा जप होने लगता है। योग वेत्ता इसे जानते हैं। अभ्यासानंतरं कुर्याद्गच्छंस्तिष्ठन्स्वपन्नति। चितनं हंसमंत्रस्य योगसिद्धिकरं परम्-योग रसायनम् 303