( मुक्ति एवं शक्ति प्राप्त )
हरि ॐ
( मुक्ति एवं शक्ति प्राप्त )
जैसा हम हमेसा ही कहा करते हैं लेख को शान्त मन से अध्ययन किया जाए जब ही आप इन मे लिखी हुई बातो को विचार कर के देखे की लिखा जो गया है उन में सत्य का भाव नज़र आता है या अधर्म का भाव है
हम सभी मे मनुष्य की तीन नस्ल हुआ करती है महिला पुरुष किन्नर यह तीन मनुष्य ही है इन तीनो में भी तरह तरह के विचार के मनुष्य हुआ करते हैं किसी मे सुर भाव होता है किसी मे असुर भाव है अब इन सभी मे बहुत लोगो मे गुण हुआ करते हैं कि वह मुक्ति प्राप्त करे बहुत से शक्ति प्राप्त करने के लिए जन कल्याण का कार्य करने का विचार रखते हैं और सभी भिन्न भिन्न कर्मो द्वारा अपना लक्ष्य पाने की कोशिश किया ही करते हैं
जिस को अपने जीवन मे मुक्ति चाहिए उस मनुष्य को क्या कर्म करने चाहिए इस के लिए यह बात पहले जान लो कि यह जो कलयुग हैं जिस में हम आप इस समय जीवित है यह अन्य युगों से सर्वश्रेष्ठ हैं मुक्ति की आशा रखने वालों व्यक्ति के लिए
यह हम किस आधार पर कह रहे हैं वह भी बताते हैं क्योकि इस युग मे मानव की उम्र बहुत कम है जितना यह कलयुग बढ़ता जाएगा मानव की उम्र कम होती चली जायेगी जैसे आप सब ने अपने जीवन में बुजुर्ग अवस्था को प्राप्त हुए लोगो की उम्र सुनी होगी कि वह 100 वर्ष जिया या उस से अधिक यह तो किसी को भी ज्ञात नही है कि मानव कब तक जीवित रहेगा सिर्फ ईश्वर के सिवा किसी को नही पता कि किस समय यम के दूत उन्हें लेने आ जाये
लेकिन जो हमने अपनी आंखों से देखा है उस आधार पर उम्र अवस्था की बात रखी जा रही है और आज देख लो मानव 70 पहुच रहा है निकल जा रहा है यू तो बाल म्रुत्यु भी होती ही है पर उम्र की व्रद्धि देख लो 100 से कम हो गयी है मानव 100 नही पहुँच पा रहा है उसी प्रकार आगे आने वाले समय मे भी उम्र कम होती चली जायेगी
पिछले युगों में मानव को मुक्ति के लिए वन गमन करना पड़ता था वैराग्य आदि भांति भाती के यज्ञ तपस्या आदि करनी पड़ती थी और उनकी उम्र भी बहुत विशाल हुआ करती थी इस बात को समझ ने के लिए महाराज मनु एवं सतरूपा जी के विषय मे जान लो जिस प्रकार मुस्लिम कोम में सबसे पहले इंसान आदम और उसकी पत्नी हव्वा हैं उसी प्रकार सनातन धर्म मे सब से पहले मनुष्य में इनकी ही गिनती आया करती है मनु एवं सतरूपा की एक प्रकार से हम सब के यह पूर्वज ही है
जिन्होंने सनातन धर्म मे जन्म लिया है अब इनके जीवन काल मे इन्होंने 20000 से अधिक वर्ष तपस्या की है इस उग्र तपस्या में इन्होंने धीरे धीरे एक एक कर के पहले अन्न फिर जल फिर सब का त्याग किया सिर्फ वायु के द्वारा ही जीवित रहे हैं कुछ ग्रहण नही किया अब विचार करो उस सतयुग में मुक्ति के लिए जीव को कितना कष्ट करना पड़ता है फिर जैसे जैसे युग बीते काल चक्र चला
हमारे धर्म ग्रथो में महात्मा आदि ने कलुयग को बहुत अच्छा इस लिए बताया है कि मानव इस मे सिर्फ हरि कीर्तन शिव पूजन नाम जप दान आदि करने से ही मुक्ति प्राप्त कर लेगा
अगर व्यक्ति हरि कथा का पान करे और हल्का फुल्का भूले भटके दान पुण्य करता रहे ईश्वर रूपी शंकर के भजन गाये सिर्फ न कोई यज्ञ करे न कोई तपस्या बस इतना करने से ही वह मुक्त हो जाएगा अगर वह अपने जीवन मे करता रहे बाकी सुख दुख तो प्रभु श्री राम के जीवन मे भी आये हैं इस लिए यह न विचार करो कि जीवन मे दुख नही आएंगे बात मुक्ति के लिए बस इतना काफी हैं
अब इस युग मे मुक्ति के लिए तंत्र भी बताया गया है मानव तँत्र द्वारा भी मुक्ति प्राप्त कर सकता है पर यह इतना सरल नही है हरि कथा श्रवण करना सरल हैं उन के नाम जप की साधना से ही वह पार हो जाएगा भवसागर को यह पुरुष हो महिला हो किन्नर हो कोई भी हो
अब बहुत लोग सोचा करते हैं कि जब बुजुर्ग होंगे उस समय हरि कीर्तन करेगे फिर यहां यह विचार कर लो कि आप को पता है क्या की आप अपने जीवन मे बुजुर्ग अवस्था देख पाओगे क्योकि कल क्या घटित होगा जीवन मे सुख आएगा या दुख इस का किसी को भी कुछ ज्ञात नही है अच्छा खासा व्यक्ति घर से निकल कर जाता है काम करने के लिए रास्ते मे दुर्घटना घटित हो जाती है वह भी घर से यही सोच कर चला था सब अच्छा होगा पर रास्ते मे कुछ और ही हुआ इस लिए कल को त्याग कर आज पकड़ लो और आज को भी त्याग कर इसी पल को पकड़ लो।
यही अच्छा है हमारे हिसाब से बाकी धर्म अर्थ काम यह जीवन के स्तम्भ हैं अपनी धर्म पत्नी से पूर्ण रूप आंनद लो काम रस में लीन रहो यह कोई दोष नही है पर अन्य की स्त्री के साथ का विचार हैं तो नरक के सुख आप का इंतजार कर रहे हैं। जीवन मे सब कर्म करते हुए ईश्वर नाम जप करो यही ग्रहस्थ आश्रम का धर्म हैं और यह आश्रम सभी आश्रम में सर्वश्रेष्ठ कहा गया है
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अब शक्ति उपलब्ध वालो आप भी सुन लो यह मार्ग एक जलता हुआ समुन्द्र हैं यह कोई गर्मी में शीतल जल जैसा नही हैं इस मे सब कुछ उलट हैं
इस मार्ग में कुछ प्राप्त करने के लिए कुछ खोना पड़ता है अब वह तुम क्या खोते हो यह तुम पर निर्भर करता है बहुत सुख का त्याग करते हैं बहुत अन्न का बहुत कुछ ओर जब तक लक्षय को प्राप्त न कर ले सब की अलग अलग कहानी है
इतना ही नही अपने पिछवाड़े मजबूत रखने पड़ते हैं कब कहा से लठ पड़ जाए किसी को कुछ नही पता हल्की सी भूल आप के जीवन की शन्ति भंग कर देगी
फिर भी तुम ने गुरु सानिध्य में रह कर कुछ प्राप्त कर लिया फिर जब उस का उपयोग करो तो सामने वाला भी कभी कभी पिता निकल जाता है वह भी उठा कर पटक देते हैं यह तो बहुत आगे की बात है
इन से पहले आप को पूर्ण रूप निर्लज बनाना पड़ेगा जिस के अंदर काम है उस को काम का पूर्ण भोग करना पड़ेगा जो कि काम उस के मार्ग में बाधा न बने अपनी इन्द्रियों पर पकड़ मजबूत करनी होगी यही नही खत्म हो जाता
तुम को इन्द्रियों से ही इन्द्रीयों का रमण करना पड़ेगा एक तरह मैथुन समझ लो क्योकि सामने जो घटित होगा वह आप को काम भोग विलाश से ले कर हर तरह परखेगा
तुम स्वयं को किसी स्त्री के पास जाने से रोख सकते हो स्त्री स्वयं को किसी पुरुष के स्पर्श से रोख सकती है पर ये मार्ग में जो मिलेंगे उन्हें कैसे रोखेगे तुम मन से पूजा करोगे और वह रात्रि स्वप्न में भोग विलास एक ही बार मे खंडित कर देते क्योकि आजमाइस तो सबकी हुआ करती है
इन सब को गुरु ही बताता है कि कैसे रुख सकते हैं क्या किया जाता है जिन से आपकी पकड़ उन पर मजबूत हो जब यह कुछ घटेगा तो उस परिस्थिति में गुरु भी आपके पास नही होंगे तुम वन में या किसी नदी के किनारे या किसी श्मशान या फिर अपने घर के किसी कमरे में सिर्फ एकांत रहोगे
अब यही नही सुरु चरण में तुम वस्त्र पहन कर पूजा करोगे अगर तुम इतने भेद भेद लेते हो उस के आगे एक समय ऐसा आएगा कि जब तुम को अपने पूजा स्थल पर ही नग्न हो कर सब कर्म करने पड़ेंगे अर्थ मन्त्र जप आदि
यह भी एक गहरा रहस्य हैं या सात्विक हो या तमिसक कोई भी मार्ग हो जब तुम आगे बढोगे एक समय ऐसा अवश्य आता है शक्ति आप को आव्हान कर के कहती है मार्गदर्शन करती है कि अब तुम इस प्रकार बेठो
यह क्यो और कैसे है इस के बीच का क्या भेद हैं तुम्हे वास्तविक गुरु इस रहस्य की समझ देगे अगर तुम उस योग्य बन पाए पर यहां तक पहुचने के लिए बहुत पड़ाव पार करने पड़ते हैं
एक छोटी सी बात आपके समझ के लिए लिख देते हैं
बच्चा जब जन्म लेता है वह पूर्ण रूप नग्न होता है अब यहां विचार करो कि आत्मा शरीर के अंदर है अर्थ शरीर एक वस्त्र हुआ अब आगे चल कर इस शरीर को वस्त्र से ढका जाता है सोचो एक को ढकने के लिए दो दो वस्त्र हैं विचित्र तो है इन की समझ जिस दिन कर लो समझ जाओगे
बड़ा अच्छा लगता है कि माता काली नग्न हैं सभी को कहने में और उस की तस्वीरे भी सेंड करते हैं नग्न रूप के चित्र जो है बड़े स्नेह से कह देते हैं शिव तो अवधूत हैं नग धड़ंग हैं बड़े सनेह से कह देते हैं यह नागा साधु हैं कहना बड़ा अच्छा लगता है पर यह भाव और इस के बीच का रहस्य समझने में युगों के जन्म बीत जाते हैं अभ्यास करते करते जब भी समझ मे नही आते
केवल गुरु कृपा ही इस भेद का खंडन करती है और कोई भी गुरु इस अवस्था के लिए जब ही कहेगा जब तुम उस योग्य हो जाओ वह भी आपकी साधना के संकेत के आधार पर
इस लिए यह मार्ग सरल नही हैं तुम सिर्फ भूत पिशाच इन को ही तंत्र मंत्र समझते हो जब कि यह सब तो मात्र इस के एक अंग हैं उसी प्रकार जैसे बरगद के व्रक्ष पर उस की पत्ती के छोटे छोटे अंकुर पतियों की कलियां आदि समझ लो
आज के लिए इतना ही दोनो विषय रख दिये हैं जिस को जो चयन करना है करो बहुत लोग इनबॉक्स में आ कर मुक्ति के विषय मे बात करते हैं जब कि सबको पता है फिर भी इस को करेगा कोई नही क्योकि नाम जप दिखने में बड़ा सरल लगता है सब समझ लेते हैं इस का कोई फल नही है आदि आदि
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