सूर्य देव की किरणों से सम्बंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी
सूर्य देव की किरणों से सम्बंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारी ।
सूर्य किरण चिकित्सा प्रायः चार माध्यमों से की जाती है :
1. पानी द्वारा भीतरी प्रयोग
2. तेल द्वारा बाहरी प्रयोग
3. सांस द्वारा
4. सीधे ही किरण द्वारा
सूर्य की किरण में सात रंग होते हैं किंतु मूल रंग तीन ही होते है :
1. लाल
2. पीला
3. नीला
सूर्य चिकित्सा इन रंगों की सहायता से की जाती है
1. नारंगी (लाल, पीला, नारंगी में से एक)
2. हरा रंग
3. नीला (नीला, आसमानी, बैंगनी में से एक)
सूर्य तप्त (सूर्यतापी) जल तैयार करने की विधि
साफ कांच की बोतल में साफ ताज़ा जल भरकर लकड़ी के कार्क से बंद कर दें। बोतल का मुंह बंद करने के बाद उसे लकड़ी के पट्टे पर रख कर धूप में रखें। 6-7 घंटे बाद सूर्य की किरण के प्रभाव से सूर्य तप्त होकर पानी दवा बन जाता है और रोग निरोधक तत्वों से युक्त हो जाता है। चाहें तो अलग-अलग बोतल में पानी बनाएं पर ध्यान रहे कि एक रंग की बोतल की छाया दूसरे रंग की बोतल पर ना पड़े।
धूप में रखी बोतल गरम हो जाने से उसमें खाली भाग पर भाप के बिंदु या बुलबुले दिखने लगें तो समझ जाएं कि पानी दवा के रूप में उपयोग के लिए तैयार है। धूप जाने से पहले लकड़ी के पट्टे सहित उसे घर में सही जगह पर रख दें व सूर्य तप्त जल को अपने आप ठंडा होने दें। यह पानी तीन दिन तक काम में लिया जा सकता है। पुराने रोगों में पानी की खुराक 25 सी. सी. दिन में तीन बार लें।
तेज रोगों में 25 सी. सी. दो-दो घंटे के बाद, बुखार, हैजा में 25 सी. सी. 1/2 घंटे के अंतराल से देना चाहिए। नारंगी रंग की बोतल का पानी नाश्ते या भोजन के 15 मिनट बाद लेना चाहिए। नीले व हरे रंग का पानी खाली पेट लेना चाहिए, क्योंकि इसका काम शरीर में जमा गंदगी बाहर निकलना व खून साफ करना है।
यदि आप टॉनिक के रूप में सूर्य तप्त जल पीना चाहते हैं तो उसे सफेद कांच की बोतल में भरकर बनाएं। इस पानी से बाल धोने से चमक आती है व बाल टूटते नहीं हैं।
सामान्य रूप से देखने पर सूर्य का प्रकाश सफेद ही दिखाई देता है पर वास्तव में वह सात रंगों का मिश्रण होता है। कांच के त्रिपार्श्व से सूर्य की किरणों को गुजारने पर दूसरी ओर इन सात रंगों को स्पष्ट देखा जा सकता है। किसी विशेष रंग की कांच की बोतल में साधारण पानी, चीनी, मिश्री, घी, ग्लिसरीन आदि तीन-चौथाई भरकर सूर्य की किरणें दिखाने से या धूप में रखने से उस कांच द्वारा सूर्य के प्रकाश से उसी रंग की किरणों को ग्रहण किया जाता है। उसी रंग का तत्व और गुण पानी आदि वस्तु में उत्पन्न हो जाता है। वह सूर्यतप्त (सूर्य किरणों द्वारा चार्ज की गई वस्तु) रोग-निवारण गुणों और स्वास्थ्यवर्धक तत्वों से युक्त हो जाती है। इन सूर्यतापित वस्तुओं के उचित भीतरी और बाहरी प्रयोग से मनुष्य के शरीर में रंगों का संतुलन कायम रखा जा सकता है और अनेक प्रकार के रोगों को सहज ही दूर किया जा सकता है। यही सूर्य किरण चिकित्सा है।
प्रकृति की अमूल्य देन सूर्य-किरणें
धूप और पाचन की क्रियाओं में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। यदि मनुष्य या अन्य किसी प्राणी पर प्रतिदिन सूर्य किरणें नहीं पड़तीं, तो उसकी पाचन और समीकरण शक्ति क्षीण हो जाती है। स्फुरण (Solar Radiation) तथा मानव जीवन इन दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। जीवन का सम्बन्ध प्रकाश-शक्ति तथा उसके वर्ण-वैभव से है, न कि प्रोटीन, श्वेत सार, हाइड्रोजन, कार्बन अथवा उष्णाँक से।
आकाश और वायु- तत्व की भाँति प्रकाश-तत्व भी अत्यन्त सूक्ष्म है। प्रकृति के हरे भरे प्रशस्त अंचल में हम जो नाना रंगों की चित्रपटी देखते हैं-यह सब सूर्य की सतरंगी किरणों की ही माया है। प्रकाश में अन्तर्निहित रंगीनी केवल नेत्रों को ही सुन्दर प्रतीत नहीं होती प्रत्युत जीवन रंजक भी है। सूर्य की किरणों का प्राणी जगत पर स्थायी प्रभाव पड़ा करता है। सूर्य किरण चिकित्सा का यही मूलाधार है। रंगीन बोतलों में पानी रखने से प्रकाश का प्रभाव भी बदलता रहता है और उसमें भाँति-2 के गुण उत्पन्न हो जाते हैं।
सूर्य की किरणों के रंग
चर्म चक्षुओं से सूर्य की किरणें श्वेत प्रतीत होती हैं किन्तु वास्तव में ये सात रंगों की बनी हुई हैं। इन सातों रंगों का रासायनिक प्रभाव पृथक-2 होता है। विभिन्न फलों तथा तरकारियों को प्रकाश तथा रंग नाना प्रकार के गुण प्रदान करता है। इन रासायनिक गुणों के अनुसार हम पृथक भाजियों का प्रयोग करते हैं। प्रकृति की तीन रचना में सबका कुछ न कुछ गुप्त प्रयोजन है। वनस्पति जगत में प्रकाश तत्व के कारण ही नाना प्रकार के गुण, रंग, एवं रासायनिक तत्व सामने आते हैं।
रंगीन फल तथा तरकारियों का प्रभाव
रंगों के आधार पर हम फल तथा तरकारियों को निम्न वर्गों में विभाजित कर सकते हैं-
1. पीला रंग
इस रंग वाले फलों का प्रभाव पाचन क्रिया पर बड़ा अच्छा पड़ता है, आमाशय और कोष्ठ के स्नायुओं को उत्तेजित करने में इसका विशेष महत्व है। ये फल रेचक व पाचक होते हैं। पेट की खराबियों में ये खासतौर पर काम में लाये जाते हैं। इनमें कागजी नींबू, चकोतरा, मकोय, अनानास, खरबूजा, पपीता, बथुआ, अमरूद। इनमें कार्बन, नाइट्रोजन या खनिज लवण प्रचुर मात्रा में होता है।
2. लाल रंग :
इस रंग वाले फलों में लोहा और पोटेशियम की मात्रा अधिक होती है। नाइट्रोजन और ऑक्सीजन की भी पर्याप्त मात्रा होती है। इस वर्ग में चुकन्दर, लालबेर, टमाटर, पालक, लालशाक, मूली इत्यादि रखें गये हैं।
3. नारंगी रंग :
इन फल तथा तरकारियों में चूना और लोहा विशेष रूप से पाया जाता है। इस श्रेणी में नारंगी, आम, गाजर इत्यादि हैं।
4. नीला रंग :
इस रंग की श्रेणी में हम गहरा नीला और बैंगनी भी रखते हैं। इन तरकारियों में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम तथा फास्फोरस अधिक होता है। इस श्रेणी में जामुन फालसा, आलू बुखारा, बेल, सेब विशेष रूप से आते हैं।
5. हरा रंग :
हरे रंग की तरकारियाँ शीतल प्रकृति की होती हैं, गुर्दों को हितकारी, पेट को साफ करने वाली और नेत्र तथा चर्म रोगों में लाभदायक सिद्ध होती है।
मनुष्य के शारीरिक अथवा मानसिक विकास में सूर्य किरणों द्वारा उत्पन्न उपरोक्त सभी रंगों के फल, शाक, भाजियों का संतुलन आवश्यक है। यदि एक ही प्रकार के रंग का भोजन अधिक दिन तक लेते रहे तो वह रंग शरीर में अधिक हो जायेगा और रोग उत्पन्न हो सकता है। अतः यथासंभव सभी रंगों का भोजन काम में लेना चाहिए। व्यक्तिगत रंग-संतुलन स्थापित कर हम सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं।
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