भैरवनाथ
भैरवनाथ:---
श्री भैरव शिव के ही निकट और समर्थ गण है। वे स्वयं देवताओ की भाति पूज्य है। कुछ तंत्र साधक उन्हे शिव का अवतार मानते है।
प्रचलित मान्यता के अनुसार भैरव जी शिवजी के सर्व प्रधान गण है। उन्हें शिव के गणों में सर्वोच्च अधिकारी माना जाता है ।
प्रत्येक शिव मंदिर की अदृश्य रूप मे देखभाल श्री भैरव जी ही करके है। जहां भी शिव का मंदिर निर्मित होता है वहां के रक्षक के रूप में भैरवजी की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। वहां मानसिक रूप में उनकी उपस्थिति की कल्पना करके उनकी पुजा की जाती है।
भैरवजी स्वयं समर्थ और देव- तुल्य अधिकार संपन्न है। यहां तक कि उन्हे शिवजी का प्रतिरूप अथवा स्थनापन्न भी माना जाता है। उनके अनेक रूप विख्यात है-- कालभैरव , रूद्रभैरव, बटुकभैरव, चतुःषष्टि भैरव अष्टोत्तरशत भैरव, स्वर्णाकर्षण भैरव, तथा आकाश भैरव, श्री शरभेश्वर भैरव आदि।
तांत्रिक जन काली, बगलामुखि, और भैरव जी की साधना सिद्धि अवश्य करते है।
तंत्र साधना मे बटुक भैरव आदि को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। वैसे किसी भी रुप मे उनकी साधना स्तुति की जाए वह नि:संदेह फलदायक होती है ।
यधपि भैरव जी की रूपाकृति भयंकर है जिसे देखकर रोमांच हो आता है किन्तु शिव भक्तो पर कृपालु होकर उनका संकट निवारण करने में तथा अपने साधक तांत्रिक की इच्छापूर्ति करने मे वो सबसे आगे रहते है ।
भय आपदा अभाव क्लेश निवारण के उद्देश्य से भक्तजन उनकी स्तुति बडी श्रध्दा से करते है ।
श्री भैरव नाथ की देह का वर्ण शंयामला है वह चार भुजा वाले है। उन भुजाओं मे त्रिशूल, खप्पर और नरमुण्ड धारण किये हुए है। उनका वाहन #श्वान है उनकी वेश भूषा शिव के समान है।
भैरव श्मशानवासी है। वे भूतप्रेत योगिनियों के अधिपति है भक्तों पर स्नेह रखने वाले व दुष्टो का संहार करने वाले है तथा सब प्रकार के कष्टो को दुर करने वाले तथा मुक्ति प्रदान करने वाले है।
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