श्रीमद्भागवत महापुराणम् में नरकों की विभिन्न गतियों का वर्णन ।

 श्रीमद्भागवत महापुराणम् में नरकों की विभिन्न गतियों का वर्णन ।

ये त्विह वै दाम्भिका दम्भयज्ञेषु पशून् विशसन्ति तानमुष्पिल्लोके वैशसे नरके पतितान्त्रिरयपतयो यातयित्वा विशसन्ति ॥ २५ ॥
यस्त्विह वै सवर्णां भार्यां द्विजो रेतः पाययति काममोहितस्तं पापकृतममुत्र रेतः कुल्यायां पातयित्वा रेतः सम्पाययन्ति ॥ २६ ॥
ये त्विह वै दस्यवोऽग्निदा गरदा ग्रामान् सार्थान् वा विलुम्पन्ति राजानो राजभटा वा तांश्चापि हि परेत्य यमदूता वज्रदंष्ट्राः श्वानः सप्तशतानि विंशतिश्च सरभसं खादन्ति ॥ २७ ॥
यस्त्विह वा अनृतं वदति साक्ष्ये द्रव्यविनिमये दाने वा कथञ्चित्स वै प्रेत्य नरकेऽवीचिमत्यधःशिरा " निरवकाशे योजनशतोच्छ्रायाद् गिरिमूर्ध्नः सम्पात्यते यत्र जलमिव स्थलमरमपृष्ठमवभासते तदवीचिमत्तिलशो विशीर्यमाणशरीरो न प्रियमाणः पुनरारोपितो निपतति ॥ २८ ॥
यस्त्विह वै विप्रो राजन्यो वैश्यो वा सोमपीथ स्तत्कलत्रं वा सुरां व्रतस्थोऽपि वा पिबति प्रमादत स्तेषां' निरयं नीतानामुरसि पदाऽऽक्रम्यास्ये वह्निना द्रवमाणं कार्ष्णायसं निषिञ्चन्ति ॥ २९ ॥
अथच यस्त्विह? वा आत्मसम्भावनेन स्वयमधमो जन्मतपोविद्याचारवर्णाश्रमवतो वरीयसो न बहु मन्येत स मृतक एव मृत्वा क्षारकर्दमे निरयेऽवाशिरा निपातितो दुरन्ता यातना ह्यश्नुते ॥ ३० ॥
ये त्विह वै पुरुषाः पुरुषमेधेन यजन्ते याश्च स्त्रियो नृपशून् खादन्ति तांश्च ते पशव इव निहता यमसदने यातयन्तो रक्षोगणाः सौनिका इव स्वधितिनावदायासृक् 'पिबन्ति नृत्यन्ति च गायन्ति हृष्यमाणा यथेह पुरुषादाः ॥ ३१ ॥
ये त्विह वा अनागसोऽरण्ये ग्रामे वा वैश्रम्भकै रुपसृतानुपविश्रम्भय्य जिजीविषून् शूलसूत्रा दिपप्रोतान् क्रीडा यातयन्ति तेऽपि च प्रेत्य यमयातनासु शूलादिषु प्रोतात्मानः क्षुत्तृभ्यां चाभिहताः कङ्क वटादिभिश्चेतस्ततस्तिग्मतुण्डैराहन्यमाना आत्म शमलं स्मरन्ति ॥ ३२ ॥
श्लोकार्थ
जो पाखण्डी लोग पाखण्ड पूर्ण यज्ञों में पशुओं का वध करते हैं, उन्हें परलोक में वैशस (विशसन) नरक में डालकर वहाँ के अधिकारी बहुत पीड़ा देकर काटते हैं ॥ २५ ॥
जो द्विज कामातुर होकर अपनी सवर्णा भार्या को वीर्यपान कराता है, उस पापी को मरने के बाद यमदूत वीर्य की नदी (लालभक्ष नामक नरक) में डालकर वीर्य पिलाते हैं ।। २६ ॥
जो कोई चोर अथवा राजा या राजपुरुष इस लोक में किसी के घर में आग लगा देते हैं, किसी को विष दे देते हैं अथवा गाँवों या व्यापारियों की टोलियों को लूट लेते हैं, उन्हें मरने के पश्चात् सारमेयादन नामक नरक में वज्र की-सी दाढ़ों वाले सात सौ बीस यमदूत कुत्ते बनकर बड़े वेग से काटने लगते हैं ॥ २७ ॥
इस लोक में जो पुरुष किसी की गवाही देने में, व्यापार में अथवा दान के समय किसी भी तरह झूठ बोलता है, वह मरने पर आधारशून्य अवीचिमान् नरक में पड़ता है। वहाँ उसे सौ योजन ऊँचे पहाड़ के शिखर से नीचे को सिर करके गिराया जाता है। उस नरक की पत्थर की भूमि जल के समान जान पड़ती है। इसीलिये इसका नाम अवीचिमान् है। वहाँ गिराये जाने से उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाने पर भी प्राण नहीं निकलते, इसलिये इसे बार-बार ऊपर ले जाकर पटका जाता है ॥ २८ ॥
जो ब्राह्मण या ब्राह्मणी अथवा व्रतमें स्थित और कोई भी प्रमादवश मद्यपान करता है तथा जो क्षत्रिय या वैश्य सोमपान* करता है, उन्हें यमदूत अयःपान नामके नरकमें ले जाते हैं और | उनकी छातीपर पैर रखकर उनके मुँहमें आगसे गलाया हुआ लोहा डालते हैं ॥ २९ ॥
जो पुरुष इस लोक में निम्न श्रेणी का होकर भी अपने को बड़ा मानने के कारण जन्म, तप, विद्या, आचार, वर्ण या आश्रम में अपने से बड़ों का विशेष सत्कार नहीं करता, वह जीता हुआ भी मरे के ही समान है। उसे मरने पर क्षारकर्दम नाम के नरक में नीचे को सिर करके गिराया जाता है और वहाँ उसे अनन्त पीड़ाएँ भोगनी पड़ती हैं ॥ ३० ॥
जो पुरुष इस लोक में नरमेधादि के द्वारा भैरव, यक्ष, राक्षस आदि का यजन करते हैं और जो स्त्रियाँ पशुओं के समान पुरुषों को खा जाती हैं, उन्हें वे पशुओं की तरह मारे हुए पुरुष यमलोक में राक्षस होकर तरह-तरह की यातनाएँ देते हैं और रक्षोगण भोजन नामक नरक में कसाइयों के समान कुल्हाड़ी से काट-काटकर उसका लोहू पीते हैं। तथा जिस प्रकार वे मांसभोजी पुरुष इस लोक में उनका मांस भक्षण करके आनन्दित होते थे, उसी प्रकार वे भी उनका रक्तपान करते और आनन्दित होकर नाचते-गाते हैं ॥ ३१ ॥
इस लोक में जो लोग वन या गाँव के निरपराध जीवों को-जो सभी अपने प्राणों को रखना चाहते हैं-तरह तरह के उपायों से फुसलाकर अपने पास बुला लेते हैं और फिर उन्हें काँटे से बेधकर या रस्सी से बाँधकर खिलवाड़ करते हुए तरह-तरह की पीड़ाएँ देते हैं, उन्हें भी मरने के पश्चात् यमयातनाओं के समय शूलप्रोत नामक नरक में शूलों से बेधा जाता है। उस समय जब उन्हें भूख-प्यास सताती है और कङ्क, बटेर आदि तीखी चोंचों वाले नरक के भयानक पक्षी नोचने लगते हैं, तब अपने किये हुए सारे पाप याद आ जाते हैं ॥ ३२ ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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