उदयनाथ जी माँ पार्वतीजी


उदयनाथ जी माँ पार्वतीजी

सृष्टि उत्पति के लिये शक्ति उत्पन्न करना आवश्यक था इसलिये ॐकारआदिनाथजी शंकर भगवान ने अपने ही काया के अन्दर की सूक्ष्मरूपी पराशक्ति को अपने ही अंग के बाहर स्थूल रूप में प्रकट किया जो अष्ठभुजा शक्ति के रूप में प्रकट हुई__ दक्ष की तपस्या से अतिप्रसन्न होकर इस शक्ति ने सती नाम से सगुण सुन्दर रूप में दक्ष के यहां जन्म लिया...
सती ने तपस्या कर शिव को प्रसन्न करके उनसे विवाह किया...दक्षयज्ञ में पति की निन्दा सुनकर सती ने योगाग्नि में आत्मदाह किया और योगमाया नाम से प्रचलित हुई...
हिमालय वंश में पार्वती रूप में जन्म लेने पर उन्हें धरत्री रूप कहा जाने लगा...शिव प्राप्ति के लिए ॐ नमः शिवाय मंत्र तप से शिव को प्रसन्न कर विवाहोपरांत कैलाश लोक शिव धाम मे निवास किया...
एक समय नारद मुनि ने कैलाश लोक में शिवजी के गले में मुण्डमाल को देख भाव विभोर होकर स्तुति गान किया उनके जाने के पश्चयात इस स्तुति का रहस्य पार्वती ने शिवजी से एकान्त स्थान में पूछा...इस अमरत्व के गुप्त ज्ञान के सोपान हेतु शिव-पार्वती के संग एकान्त क्षीर सागर किनारे श्रृंगपर्वत (डोंगी) पर पहुंचे__जहां उन्होंने योगज्ञान अर्थात अमर ज्ञान मृत्युंजय रूप में पार्वती को दिया__परिणाम स्वरूप पार्वती जी को वैराग्य उत्पन्न हुआ...शिवजी ने उन्हें दीक्षित किया यह महायोग ज्ञान पार्वती ने प्रथमतः शिष्य रूप में लिया अतः ज्ञानोदय होने के कारण शिव ने कहा हे पार्वती! नाद जनेऊ झोली खप्पर मुद्रा धारण कर मृत्यूलोक में नाथ सम्प्रदाय में तुम्हारा अवतार उदयनाथ नाम रूप में पूज्यनीय होगा...
एक बार गुरु गौरक्षनाथजी महाराज घनघोर जंगल में एक बिल्व पत्र वृक्ष के नीचे बैठकर गगन विहार सिद्धि प्राप्ति हेतु तपस्या कर रहे थे उसी क्षेत्र में उदयानाथ जी भी तपस्या कर रही थीं...गुरु गौरक्षनाथ जी की तपस्या देखकर उनकी परीक्षा लेने हेतु सुन्दर मोहिनी रूप धारण कर लेट गई... समाधि जागृत होने के पश्चयात गौरक्षनाथजी ने दृष्टिपात होने पर उनका शरीर बिल्व पत्तों ढक दिया___उदयनाथजी ने प्रसन्न होकर गौरक्षनाथजी को अपने मूल स्वरूप (पार्वती जी का) में दर्शन दिये और अपने रक्त रूप में भगवा वस्त्र प्रदान किये तथा अपने गुरु आदिनाथ जी का परिचय दिया...
उदयनाथ जी सूक्ष्मरूपी पराशक्ति इस चराचर सृष्टि में विधमान हैं__स्थूल रूप में कैलाश मानसरोवर पर निवास करती हैं...त्र्यम्बक महाकुम्भ पर्व पर नवनाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोट नाथ सिद्ध एकत्रित हुए थे तब उदयनाथ पार्वती जी ने नाथसिद्धो को दया क्षमा शान्ति कृपा आशिर्वाद आदि पर उपदेश देकर योगशक्ति से चरणों में पाताल पेट (गर्भ) में मृत्युलोक वक्षस्थल में स्वर्ग का तथा शीश में अखण्ड ब्रम्हाण्ड का दर्शन करवाया था...सृष्टि उत्पत्ति शक्ति पराशक्ति रूप से कैसे हुई एवं योग में शक्ति का महत्व आदि पर उन्होंने उपदेश दिया...
आदिनाथ जी ने उदयनाथ जी को जगतजननी गुरु गौरक्षनाथ जी ने ज्योति स्वरूपी एवं मत्स्येन्द्रनाथ जी ने योगमाया नाम प्रदान करके इन्हें गौरान्वित किया...
उदयनाथ जी (पार्वती) ने अलवर जोधावास क्षेत्र के घनाघोर जंगल में "उदयनाथ धाम" में स्थित गुफा में साठ हजार वर्ष घोर तपस्या की___सम्पूर्ण चौदह भुवन भ्रमण किया... स्वयं पराशक्ति होने के कारण सभी सिद्धियां उनकी दासी थी__ एक बार घाटी में भर्तहरिनाथजी म।आराज तपस्या में लीन थे__उस समय उदयनाथ जी भी उनको भेट देने के लिय वहां आई थी___गंगा माता ने भी उनके दर्शन किये थे___भर्तहरिनाथजी को दर्शन देकर हरिद्वार जाने का आदेश दिया जहां उत्तरार्ध काल में हरिद्वार स्थित गुफा में वे तपस्यारत रहे__उदयनाथजी ने समय- समय पर नाथ सिद्धों को उपदेश एवं मार्गदर्शन किया...
दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जी के सप्तश्रृंग पर्वत पर शक्ति साधना तपस्या करने के समय वहां उदयनाथ जी ने दर्शन देकर उन्हें वज्रेश्वरी सप्तकुण्ड (मुंबई के पास) जाने को कहा और एक वनस्पति देकर कहा जिस कुण्ड में यह वनस्पति मुरझा जायगी उसी कुण्ड में तुम्हें मृत संजीवनी का लाभ होगा...नाथ सिद्ध योग में जब कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है उदयानाथ जी के दिव्य दर्शन प्राप्त होते हैं...
स्वाधिस्ठान चक्र में सावित्री रूप में सुषुम्ना में गंगा रूप में अनहद चक्र में उमा रूप में मणिपुर चक्र में लक्ष्मी रूप में विशुद्धि चक्र में अविधा शक्ति रूप में प्राण चक्र में पराशक्ति रूप में चिबुक चक्र में सरस्वती रूप में कर्णमूल में श्रुति शक्ति रूप में तथा भ्रूमध्य में ज्ञान शक्ति रूप में ब्रह्मरंध्र में अनुपम शक्ति रूप में अकण्ठ पीठ में अकलेश्वरी रूप में अन्त में असंख्य चक्र में असंख्या शक्ति रूप में दर्शन देकर सम्पूर्ण ऋद्धि-सिद्धियाँ व्रज काया ब्रम्हाण्ड भ्रमण महाज्ञान योगी को प्रदान करती है__ योग साधना में कार्य शक्ति से पराशक्ति का अनुभव होता है__गुरुनाथ सिद्धो के सभी शक्ति साधना की यह ईष्ट शक्ति आदिशक्ति पराशक्ति रूप में कार्य करती है...
मन्त्र तन्त्र साधना कुल अकुल या कौल साधना कापालिक साधना वज्रायीनी साधना घोर अघोर साधना अत एवं योग कुण्डलिनी साधना में उदयनाथ जी की कृपा प्रसन्नता के बिना साधना सिद्ध नहीं होती है...विशेषतः मन-इन्द्रियों पर विजय पाने पर उदयनाथ माँ पार्वती जी दर्शन देते हैं...
ऐसे पूर्णत्व प्राप्त उदयनाथ जी की नवनाथों व नाथ सिद्धो में उच्च स्थान में मान्यता है श्रद्धालुजन अलवर जोधवास (गाँव-मई जोड़) "उदयनाथ धाम" नाम के क्षेत्र में उनकी समाधि पर पूजा अर्चना कर श्रद्धासुमन अर्पित करते है...
" :गायत्री मन्त्रः "
" ॐ ह्रीं श्रीं उं उद्यनाथाय विदमहे धत्रीरूपाय धीमही तन्नो पराशक्ति प्रचोदयात "
"ॐ श्री उदयनाथ नमः"
उपरोक्त में से किसी एक मंत्र का 108 बार नित्य जप करना चाहिए...उन सिद्ध योगी उदयनाथ जी (माँ पार्वती) को हम बारंबार नमस्कार करते हैं पुनः पुनः आदेश करते हैं... ॐ
अलख निरंजन
ॐ नमो पारवती पतये नम:
हे व्योमकेश आपको नमन हरो सकल उर पीर
नीलकंठ त्रिपुरारि प्रभु सतत भरो उर धीर
हे नाथ आप ही का सदा आसरा

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