दरिद्र शिव भक्त

दरिद्र शिव भक्त :---------

एक बार माता पार्वती ने भूखे भक्त को श्मशान के चिता की अग्नि पर रोटी सेंकते हुए देखा। माता पार्वती की हृदय पूरी तरह पसीज गया। वे भागी-भागी भगवान शंकर के पास आयी और भगवन से कहने लगी लगता है आपका हृदय बहुत ही कठोर है, जो अपने भक्त की यह दशा देख कर भी नहीं पसीज रहा हैं।
हे प्रभु, कुछ नहीं तो कम से कम इतना तो कर सकतें है, की अपने भक्त की भोजन की उचित व्यवस्था कर देते। देखिये वह किस दशा में है अपने कितने दिनों की भूख को मृतक को पिंड में दिए गए आटे की रोटियां बनाकर शांत कर रहा है।
भगवान शंकर हंसते हुए कहने लगे – ऐसे भक्तों के लिए मेरा द्धार हमेशा खुला हुआ है। परन्तु वे आना ही नहीं चाहते हैं, यदि कोई वस्तु उन्हें दी जाए तो उसे स्वीकार नहीं करते। कष्ट उठाते रहते हैं अब ऐसी स्तिथि में हे पार्वती तुम ही बताओ मै क्या करूँ।
फिर पार्वती माता बोलीं – प्रभु क्या आपके भक्तों को पेटपूर्ति के लिए भोजन की आवश्यकता भी नहीं होती।
भगवान शंकर बोले ‘ हे प्रिये परीक्षा लेने की तो तुम्हारी पुरानी आदत है ‘ यदि विश्वास नहीं है तो स्वयं जाकर पूछ लो।
परन्तु मेरे भक्त की सावधानी से परीक्षा लेना।
भगवान शंकर का आदेश पाते ही माता पार्वती भिखारिन वृद्धा का वेशभूषा बनाकर शिवभक्त के पास पहुंची और बोली – बेटा मै कई दिनों से भूखी हूँ, क्या मुझे भी कुछ खाने को दोगे।
भक्त बोला अवश्य माते, और जो चार रोटियां बनाई थी उसमे से दो रोटी उस वृद्ध औरत को दे दिया और बचे दो रोटी को स्वयं खाने के लिए आशन लगाकर बैठ गया।
वृद्धा बोली बेटा इन दो रोटियों से कैसे काम चलेगा ? मै अकेली नहीं हूँ बेटा, मेरा एक बूढ़ा पति भी है जो कई दिनों से भूखा है। कृपा करके उसके लिए भी कुछ दे दो
शिवभक्त ने उन दो रोटियों को भी उस भिखारिन को दे दिए और वे बड़े ही संतोष थे की उनकी वजह से अधिक भूखे व्यक्ति को खाना मिल सका। भक्त ने अपने कमण्डल से जल पिया और आत्मसंतोष के साथ वहां से जाने लगे।
वृद्ध भिखारिन बोली – वत्स तुम कहाँ जा रहे हो, भक्त ने पीछे मूड कर देखा। माता पार्वती अपने वास्तव रूप में आयीं और भक्त से बोली की मै तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, तुम्हे जो वरदान चाहिए वो मांग लो।
भक्त ने उन्हें प्रणाम किया और बोला – अभी तो अपनी और अपनी पति की क्षुधा सांत करने हेतु मुझसे रोटी मांग कर ले जा रही थी। जो स्वयं दूसरों के समक्ष अपना हाँथ फैलाकर अपना पेट भरता है वह मुझे क्या दे सकता है, ऐसे भिखारी से भला क्या मांगूं।
भक्त ने श्रद्धा पूर्वक माता के चरणों में सिर झुकाकर कहा – हे माँ आप प्रशन्न ही हैं तो मुझे यह वर दें की मुझे जीवन में जो कुछ भी मिले उसे दिन-दुखियों में लगाता रहूं, और अभावग्रस्त स्थिति में बिना मन को विचलित किये शांतिपूर्वक रह सकूँ।
पार्वती माता भक्त को तथास्तु कहते हुए वापस लौट गयी। त्रिकालदर्शी भगवान शंकर सब देख रहें, उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, हे पार्वती – मेरे भक्त इसलिए दरिद्र नहीं रहते की उन्हें कुछ नहीं मिलता। भक्ति से जुडी उनकी उदारता उन्हें अत्यधिक दान कराती है और वे खाली हाँथ रहकर भी अधिक सम्पत्तिवानों से भी अधिक संतुष्ट रहते हैं।

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