अनिच्छा से भी यदि भगवान् का स्मरण किया जाय तो उससे पापों का नाश होता है।
अनिच्छा से भी यदि भगवान् का स्मरण किया जाय तो उससे पापों का नाश होता है।
जैसे बिना इच्छा के भी यदि अग्नि छू जाय तो वह जला देती है। तात्पर्य यह कि जैसे अग्नि का स्वभाव है कि जो संपर्क में आये उसे जला दे, इसी प्रकार भगवान् का स्वभाव है कि जिसने उनका स्मरण किया उसके पापों को वे नष्ट कर देते हैं।
श्री मद्भागवत गीता में नारायण स्वयं कहते है
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥१८- ६२॥
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥१८- ६६॥
हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में (लज्जा, भय, मान, बड़ाई और आसक्ति को त्यागकर एवं शरीर और संसार में अहंता, ममता से रहित होकर एक परमात्मा को ही परम आश्रय, परम गति और सर्वस्व समझना तथा अनन्य भाव से अतिशय श्रद्धा, भक्ति और प्रेमपूर्वक निरंतर भगवान के नाम, गुण, प्रभाव और स्वरूप का चिंतन करते रहना एवं भगवान का भजन, स्मरण करते हुए ही उनके आज्ञा अनुसार कर्तव्य कर्मों का निःस्वार्थ भाव से केवल परमेश्वर के लिए आचरण करना यह 'सब प्रकार से परमात्मा के ही शरण' होना है जो उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परमधाम को प्राप्त होगा॥
तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर॥
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