व्रजवासियो का श्याम विरह में विलाप

 व्रजवासियो का श्याम विरह में विलाप

ठाकुर जी वृन्दावन से मथुरा जाने लगे तो, व्रजवासियो के ह्रदय पर मानो ब्रजघात हो गया हो।

विरह की मारी बासुरी रो रही हैः- "हे गोविन्द अब मुझे कौन अधरों से लगाएगा"
वो गईया रो रही हैः- "हे गोविन्द विधाता ने हमे पशु क्यों बनाया?
आज हमारा स्वामी जा रहा है पर हम रोक नही पा रही है।
जुबा होती तो तुम से विनती कर रोक लेती...."
पशु-पक्षी, गोपी-ग्वाला सबके मुख से एक ही शब्द निकलता है:-
"प्रीत निभाना ओ सावरिया, दरस दिखाना ओ सावरिया।
ओ पांडूरंगा भूल बिछड़ मत जाना रे, ओ प्रियतम प्रीत की रित निभाना रे।
ओ कन्हैया हम को तू ना भूलना रे....
हे कन्हेया कही तू हम व्रजवासियो को भूल तो नही जायेगा न?
तुझे हमारी याद तो आयेगी न..........?
मैया बेसुध सी पड़ी है...."
अगर व्रजवासी कृष्ण के विरह में इतने दुखी है तो ऐसी बात नही है की कृष्ण के ह्रदय मे बिछड़ने की पीड़ा नहीं है, ठाकुर जी भी बहुत दुखी है।
मन तो ठाकुर जी का भी बहुत करता है की इनके साथ में मैं भी रो लु पर सोचा की मैं भी इन सबके सामने रोने लग जाऊंगा तो इनको लगेगा की हमारा कन्हैया बहुत दुखी होकर गया।
इसलिए ठाकुर जी अपने को संभालते हुए नजरे फेर लेते है मानो सबको ये दिखा रहे हो की हमारा कृष्ण राजी मन से जा रहा हो।
श्री कृष्ण रथ में बेठे ,रथ कुछ दूर गया, ठाकुर जी दाऊ दादा के कंदे पर सर रखकर फुट - फुट कर रोने लगे...
"हे दाऊ दादा ये मैंने क्या कर दिया, जिस मैया ने मेरे सर के बाल टूटने जितनी भी तकलीफ नही होने दी, आज मैं उस मैया का दिल तोड़कर आ गया।
हे दाऊ दादा अब मुझे कनुवा-कनुवा कह कर कौन बुलायेगा।"
दाऊ दादा कृष्ण को समझाते है की:- "हे कृष्ण तू ऐसे करेगा तो फिर इस व्रज का क्या होगा? बाकि लीलाओं का क्या होगा ?
अभी तो तुझे बहुत बड़े-बड़े काम करने है।"
ठाकुर जी रोते हुए कहते है की:- " हे दाऊ दादा अब तो ऐसा लगता है की इस भूमि पर जैसे मेरा कोई काम ही नही है।
अब ये कंस को, जरासन को, मारना कोई लीला नही।
अगर लीला का सुख था तो मेरी मैया के साथ, मेरी गोपियाँ के साथ, मेरी बांसुरी के साथ, उन ग्वाल बालों के साथ था।
अब ये सब छुट गए, मेरी मैया छुट गयी, मेरी गईया छुट गई, मेरे सखा छूट गए , मेरी श्यामिनी राधा छूट गयी, मेरी बांसुरी छुट गयी, मेरी गोपियाँ छुट गयी।"
समझे तो कृष्ण के ह्रदय में भी बहुत प्रेम है।
जरा कल्पना कीजिये जिनका जीवन ही श्रीकृष्ण था, हरपल उनके दर्शनों के लिए आतुर रहते थे, उनसे बिछड़ने की दर्द पीड़ा कैसे सही होगी..?
जिस के बालपन के सब खेल छूट गए हो, सब सखा छूट गये हो, उन श्रीकृष्ण के ह्रदय में कितनी पीड़ा रही होगी..?
आप कहेंगे की वे तों भगवान है, भगवान को कैसा दुःख.?
पर भगवान ने अपने भीतर भी तो ह्रदय रचा है और जहाँ ह्रदय हो वहां दुःख कैसे न हो।
हम सबको वे ह्रदय से ही तो अपनाते है।
दिमाग से तो हम जैसे अभागे मानते है, जरा दिमाग को परे रख कर भगवान में ह्रदय लगा कर देखिये.l
जय श्री राधे राधे

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